ऐ मेरे देश!
है हर हिंदुस्तानी की यही दुआ,
ऊँची रखने खातिर तेरी आन, बान और शान,
कुर्बान की न जाने कितने जवानों ने अपनी जान|
ऐ गंगा, यमुना, और सप्त-सिंधु नदियों,
सदा बहती रहो,
अपने आशीर्वाद में नहलाकर हमारे सारे पाप ले लो,
पूजते हैं हम सभी तुम्हें देवी मान कर,
तुम सदा शुद्धता बढाती रहो, अविरल बह कर|
ऐ देश के संविधान, दिलाते रहो हमें अपने हक और कर्म की याद,
बनाया था तुम्हें इसीलिए डॉ. आंबेडकर जी ने, जब हुआ देश आज़ाद,
एकता को बढ़ावा दो और करो भेद-भाव का तिरस्कार,
सफल करवाओ हर वह योजना जो बनाती है सरकार|
ऐ गीता ग्रंथ, बनो तुम न्याय की दाता,
क्योंकि हर गवाह कसम तुम्हारी है खाता,
बड़े-बड़े व्यक्तित्व वाले लोगों के पैरों तले न कुचलो,
पीड़ितों को इन्साफ और मुजरिमों को सज़ा दिलवाओ|
ऐ इतिहासिक किले, महल और मंदिर, रखो हमारी संस्कृति को अमर,
ताकि देखकर तुम्हें, हो जाए हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊपर,
तुम केवल इमारतें नहीं, निशानी हो धर्म और वीरता की,
गवाह हो तुम विदेशियों की हार और हमारी अजेयता की|
ऐ देश की मिट्टी, तू सदा सोना-मोती-हीरे उगलती रहना,
तेरे ऊपर बसने वालों का यही है तुझसे कहना,
माँ का दर्जा देकर तुझे हम सर पर लगाते है,
और मरने के बाद तुझ ही में सिमट जाते है|
ऐ मेरे देश, तू रहे सबसे आगे,
तुझ ही से जुड़े है हमारे सपनों के धागे,
"प्रीत" के लिए तेरी शान से ऊँचा कोई इनाम नहीं,
हर हिंदुस्तानी के लिए तेरी रखवाली से बड़ा कोई काम नहीं|
चैताली दी. सिन्हा २६ जनवरी २०२३
अति सुंदर।
ReplyDeleteअच्छा प्रयास। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteखूब सुंदर। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं। ऐसे ही लिखते रहो। खूब नाम कमाओ। 🙌
ReplyDeleteReally Nice Poem
ReplyDelete