एक पहचान
हर जनवरी , होती है जो आसमान में चारों ओर , उड़ती है आज़ाद होकर और बंधती है फिरकी से जिसकी डोर | जब कटती है तो अपने पीछे सबको भगाती है , और कभी कभी सबकी उँगलियाँ भी कटवाती है | हुनर है उसमें नीले आसमान को रंगीन करने का , काम है उसका दो दिन के लिए सब के दिल में उत्साह भरने का | कितनी नसीबवार होती है यह पतंग , जो खुलकर जीती है ज़िंदगी हवा के संग | ' प्रीत ' मानती है इस पतंग को एक पहचान , जो भरती है एक सबसे लंबी उड़ान | कवयित्री: दिनांक : चैताली दी . सिन्हा १४ जनवरी २०२ १