कृष्ण के रूप
माता देवकी और पिता वासुदेव के लिए हैं वो रक्षक , मामा कंस और अनेक राक्षसों के हैं वो भक्षक यशोदा मैया-नन्द राय की आँखों का है वो तारा , माखनचोर पुकारता जिसे नन्द गावों सारा | गोपियों के मन में है उसके लिए प्यार , राधा और रुक्मिणी को था जिनसे विवाह का इंतज़ार | सुभद्रा और बलराम के वो है भाई , द्रौपदी संग उन्होंने राखी की कथा रचाई | भीष्म भी हैं उनके भक्त , शिशुपाल चाहता था पीना उनका रक्त | दुर्योधन समझता था उन्हें कमजोर , शकुनि चाहता था अपने हाथों में उनकी डोर | अर्जुन के लिए थे वो मार्गदर्शक , अभिमन्यु के बने वो स्वयं शिक्षक | धृतराष्ट्र मानते थे उन्हें अपने पुत्रों का हत्यारा , आखिर शिवभक्तिनी के श्राप ने उन्हें मारा | किसी के लिए थे वो अच्छे और ज्ञानी , तो कुछ ने समझा उन्हें बुरा और पापी | पर नहीं समझ सका कोई उनका दुःख , सभी ने उनसे चाहा सिर्फ सुख | " प्रीत" का भगवान कृष्ण के हर रूप को नमस्कार , हैं जो इस सृष्टि के सृजनहार के आँठवे अवतार| कवयित्री: दिनांक : चैताली दी. सिन्हा ( प्रीत)