बालिकाएँ एवं समानता
दोनों ही माँ की कोख से जन्म लेते हैं , दोनों ही औरत को माँ बनाते हैं | दोनों ही आँगन में खेलते हैं , दोनों ही झूले पर झूलते हैं | दोनों ही साथ पढ़ते-लिखते हैं , दोनों ही एक जैसे संस्कार सीखते हैं | दोनों से होती है माँ-बाप को उम्मीदें , काबिलियत तो पूरी होती है दोनों से | दोनों ही परिवार का नाम रोशन करते हैं , दोनों ही अपनों को खोने से डरते हैं | दोनों मेहनत से हासिल करते हैं सफलता , दोनों में है सब कर दिखाने की क्षमता | जब भगवान ने बनाया है दोनों को बराबर , फिर क्यों देखे जातें है लड़के ऊपर | यों तो बदल रहा है समय और बदल रहे है विचार , लेकिन अब भी होता है लड़की जनने वाली माँ पर अत्याचार | मौका मिलने पर वो भी बदलेंगी तुम्हारी तक़दीर , क्योंकि हर लड़की होती है कोमल और वीर | " प्रीत" की विनती है , मिले बेटियों को भी सम्मान , मत रोकना उन्हें , पूरे करने दो उनके अरमान | कवयित्री: दिनांक : चैताली डी. सिन्हा