बालिकाएँ एवं समानता



दोनों ही माँ की कोख से जन्म लेते हैं,
दोनों ही औरत को माँ बनाते हैं
 
दोनों ही आँगन में खेलते हैं,
दोनों ही झूले पर झूलते हैं
 
दोनों ही साथ पढ़ते-लिखते हैं,
दोनों ही एक जैसे संस्कार सीखते हैं|
 
दोनों से होती है माँ-बाप को उम्मीदें,
काबिलियत तो पूरी होती है दोनों से|
 
दोनों ही परिवार का नाम रोशन करते हैं,
दोनों ही अपनों को खोने से डरते हैं
 
दोनों मेहनत से हासिल करते हैं सफलता,
दोनों में है सब कर दिखाने की क्षमता|
 
जब भगवान ने बनाया है दोनों को बराबर,
फिर क्यों देखे जातें है लड़के ऊपर|
 
यों तो बदल रहा है समय और बदल रहे है विचार,
लेकिन अब भी होता है लड़की जनने वाली माँ पर अत्याचार|
 
मौका मिलने पर वो भी बदलेंगी तुम्हारी तक़दीर,
क्योंकि हर लड़की होती है कोमल और वीर|
 
"प्रीत" की विनती है, मिले बेटियों को भी सम्मान,
मत रोकना उन्हें, पूरे करने दो उनके अरमान|   
 

कवयित्री:                                                                                                      दिनांक:
चैताली डी. सिन्हा                                                                                             अक्टूबर, २०२०

Comments

  1. बहुत अच्छा लिखा है..

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  2. बहोत शानदार Nice written👌👏

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  3. जीतना उमदा विचार है उतनी ही उमदा कविता लिखी है।👌👍

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  4. Amazing and heart touching.. so proud of you.. keep it up!

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  5. Very well described! Well done Chaitali

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  6. बहुत अच्छा👍

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  7. Nicely presented through words. Superb!

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