पतंग की ऊँचाइयाँ

बंधती है वह एक डोरी से
,
होती है फिरकी के हाथों में उसकी उड़ान,
फिर भी उड़ती है ऊँचा,
बरकरार रखते हुए अपनी शान|

हवाओं के संग वह उड़ती है
,
आसमान की ऊँचाइयों को चूमती है,
किसी मस्तमौजी की तरह,
पूरे आकाश में वह घूमती है|

जब तक उसकी डोर हाथ में है
,
लोग उसे ख़ुशी से उड़ाते हैं,
लेकिन जब वह कट जाए,
तो उसे किसी बेगाने की तरह भूल जाते हैं|

पतंग
इंसानों को ही तो दर्शाती है,
हवा के साथ-साथ नये रास्ते पर मुड़ती है,
यह "प्रीत" भी कितनी पागल है,
जो कागज़ की पतंगों में अपनी प्रेरणा ढूंढ़ती है|

कवयित्री
:                                                                                       दिनांक:
चैताली दी. सिन्हा                                                                      १४ जनवरी २०२४ 

Comments

  1. Happy Makarsankranti to you ♥️❤️

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  2. बहुत ही प्रसांगिक एवं खूबसूरत रचना है।
    ढेर सारी शुभकामनाएं 💐

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  3. 👌👌👍
    Happy Makarsankranti 🎈🎈

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